घुमरते हुए मन को देख आज येह पिंजरा मुस्कुराया,
बांधे हुए मन को रोक जाने उसने क्या पाया.
सिमटा हुआ मन खुद को विह्लित पाए,
सोचे भला कैसे वोह उस धरा के पार जाये.
आसमा को सायद बंधन ना भाये,
इसी कारन उसने कभी आंसू ना बहाए.
अकुलाया मन पूछे येह बार बार.
क्या बंधन हिन् है जीवन का सार,
मन को चिंतित देख पिंजरा घबराया,
कहा तुम बिन नहीं है मेरे जीवन का आधार,
फिर भी आज तुम मुक्त हो..
उन्मुक्त मन ने लगायी लम्बी उड़ान.
पर्वतों के पार जहाँ थी लम्बी ढलान.
खुद को अकेला पा मन घबराया,
तब उसकी समझ में आया जिस्म बीन क्या है साया.
पिंजरे का प्रेम हम कभी देख नहीं पाते
हमेशा मन का दुखरा सुनाते
येह बंधन ही हैं जीवन का आधार
इन्होने हीं तो पिरो रखा है येह संसार............
बांधे हुए मन को रोक जाने उसने क्या पाया.
सिमटा हुआ मन खुद को विह्लित पाए,
सोचे भला कैसे वोह उस धरा के पार जाये.
आसमा को सायद बंधन ना भाये,
इसी कारन उसने कभी आंसू ना बहाए.
अकुलाया मन पूछे येह बार बार.
क्या बंधन हिन् है जीवन का सार,
मन को चिंतित देख पिंजरा घबराया,
कहा तुम बिन नहीं है मेरे जीवन का आधार,
फिर भी आज तुम मुक्त हो..
उन्मुक्त मन ने लगायी लम्बी उड़ान.
पर्वतों के पार जहाँ थी लम्बी ढलान.
खुद को अकेला पा मन घबराया,
तब उसकी समझ में आया जिस्म बीन क्या है साया.
पिंजरे का प्रेम हम कभी देख नहीं पाते
हमेशा मन का दुखरा सुनाते
येह बंधन ही हैं जीवन का आधार
इन्होने हीं तो पिरो रखा है येह संसार............
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