जाने क्या सोच के मैं घबराता हूँ,
जब भी मिलता हूँ तुमसे ;
मैं खुद में हैं खो जाता हूँ !!
घुलती हुई स्याही की तरह
तुम्हारी बातें लगें मुझे परछाई की तरह.
चाहता हूँ वह हर पल मेरे साथ रहे,
पर अँधेरे की स्याह रातों की तरह,
वो भी मुझसे दूर हो गयी तुम्हारी तरह!!!
इस रैना की बात निराली हैं,
इतनी नशीली की पूरे जग ने अपनी होश गवां डाली है..
अपनी हीं गहराई में वह इतनी खो जाती है,
की भोर आने सुबह की किरने भी उसे उठा नहीं पाती..
बीती हुई रैना के भी साथ काश में खुद भी घूम हो पाता,
सुबह की नयी किरण से नया रूप गढ़ पाता!!!
लेकिन सोचता हूँ मैं ;
क्या गुम होकर भी तुमसे पाऊँगा ???
क्योंकि मुझे लगता हैं मेरी परछाई का एक रूप तुम भी हो,
मेरे शब्दों में पिरोई कोई कहानी तुम ही हो !!!!!
जब भी मिलता हूँ तुमसे ;
मैं खुद में हैं खो जाता हूँ !!
घुलती हुई स्याही की तरह
तुम्हारी बातें लगें मुझे परछाई की तरह.
चाहता हूँ वह हर पल मेरे साथ रहे,
पर अँधेरे की स्याह रातों की तरह,
वो भी मुझसे दूर हो गयी तुम्हारी तरह!!!
इस रैना की बात निराली हैं,
इतनी नशीली की पूरे जग ने अपनी होश गवां डाली है..
अपनी हीं गहराई में वह इतनी खो जाती है,
की भोर आने सुबह की किरने भी उसे उठा नहीं पाती..
बीती हुई रैना के भी साथ काश में खुद भी घूम हो पाता,
सुबह की नयी किरण से नया रूप गढ़ पाता!!!
लेकिन सोचता हूँ मैं ;
क्या गुम होकर भी तुमसे पाऊँगा ???
क्योंकि मुझे लगता हैं मेरी परछाई का एक रूप तुम भी हो,
मेरे शब्दों में पिरोई कोई कहानी तुम ही हो !!!!!